मकर
संक्रांति पर शहर में सूरज
उगने से पहले शुरू हुई आसमान
छूने की होड़ सूरज डूबने के
बाद तक बनी रही। लोगों में
पतंगबाजी का उत्साह ऎसा था
कि दिन छोटा पड़ गया।
एक
योद्धा के जैसे तैयारी कर सोए
पतंगबाज सुबह अंधेरे में ही
उठ गए और छतों पर तेज आवाज में
गाना बजाने लगे। आवाज सुनकर
पूरी गली जाग गई।
फिर
अंधेरा छंटने लगा, लेकिन
कोहरा पसरता जा रहा था...
फुहारों
के रूप में नीचे गिरती ओस और
शीतलहर भी जोश को कम नहीं कर
पा रही थी। फिर धीरे-धीरे
आसमान सतरंगी होने लगा।
सुबह
करीब 10 बजे
धुंध को चीरता हुआ सूरज निकला
तो लोग खाने-पीने
का सामान लेकर छतों पर आ डटे
और गूंजने लगा वो काटा...
वो मारा...
का शोर।
बदलती
रही हवा की दिशा
सुबह
हवा पश्चिम की ओर चल रही थी।
दोपहर में रूख उत्तर की ओर हो
गया। फिर पूर्व की तरफ हवा
चलने लगी। दिनभर हवा पतंगबाजी
के अनुकूल रही। हालांकि,
बीच-बीच
में कुछ देर के हवा नहीं चलने
से थोड़ी परेशानी आई।
सड़कें
खाली, छतों
पर शहर
शहरभर
में पूरे दिन सड़कें सूनी नजर
आई, लग
रहा था मानो कर्फ्यू लग गया
हो। आबाद थीं तो बस छतें,
लोग परिवार
सहित देर शाम तक छतों पर ही
डटे थे। हां, सड़कों
पर झाड़ लिए पतंग लूटने वाले
जरूर नजर आ रहे थे। इनमें भी
बच्चों की संख्या ज्यादा थी।
...फिर
शाम होते ही आतिशबाजी
सूरज
ढलने के बाद पतंगें उतरने लगीं
तो आसमान आतिशबाजी से झिलमिला
उठा। चारों ओर रोशनी नजर आ रही
थी। कई लोगों ने रोशनी वाली
पतंगें भी तान रखी थीं।
Source: Jaipur News from Rajasthan Hindi News Desk
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