विरासत
गुरूवार को एक बार फिर पूरी
शिद्दत के साथ साकार हुई।
विख्यात शायर कैफी आजमी की
असरदार पंक्तियों को उनकी
एक्ट्रेस बेटी शबाना आजमी ने
फेमस हैरिटेज मॉन्यूमेंट
हवामहल में साझा किया।
यह
अनूठा संगम पर्यटन विभाग,
राजस्थान
और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल
की ओर से सजाई गई सांस्कृतिक
संध्या में देखने को मिला।
शबाना ने कैफी की शायरी का
गुलदस्ता पेश कर उनकी कलमकारी
की गहराई से रूबरू करवाया।
शबाना
ने शुरूआत कैफी की नज्म "दायरा"
सुनाकर की।
उन्होंने "जिस्म
से रूह तक, रेत
ही रेत है..., फिर
भी मयखाना खाली है" और
"गौसे
गौसे खड़ी मस्जिद बड़ी बड़ी
" सुनाकर
तारीफ बटोरी।
रोज
बढ़ता हूं जहां से आगे
फिर
वहीं लौट के आ जाता हूं
बारहा
तोड़ चुका हूं जिनको
इन्हीं
दीवारों से टकराता हूं
रोज
बसते हैं कई शहर नए
रोज
धरती में समा जाते हैं
जलजलों
में थी जरा सी गर्मी
वो
भी अब रोज ही आ जाते हैं।
शबाना
की गुजारिश पर सुनाए "ये
आंसू..."
शबाना
के बाद गीतकार जावेद अख्तर
ने भी अपनी कलम से निकले शब्दों
का जादू बिखेरा। उन्होंने दो
नज्में पेश कीं, जिसमें
पहली "मैं
भूल जाऊं तुम्हें..."
और शबाना
की गुजारिश पर दूसरी नज्म "ये
आसूं क्या सवाल है..."
पेश की।
मैं
भूल जाऊं तुम्हें, अब
यही मुनासिब है।
मगर
भुलाना भी चाहूं तो किस तरह
भूलूं।
कि
तुम तो फिर भी हकीकत हो कोई
ख्वाब नहीं।
यहां
तो दिल का ये आलम है क्या कहूं।
कमबख्त
भुला सका ना ये वो सिलसिला जो
था ही नहीं
वो
इक खयाल जो आवाज तक गया ही नहीं
वो
एक बात जो मैं कह नहीं सका तुमसे
वो
एक रब्त जो हममें कभी रहा ही
नहीं
स्पेनिश
कलाकारों ने सुनाए कथक के बोल
सांस्कृतिक
संध्या में शबाना और जावेद
के अलावा स्पेनिश कलाकारों
ने भी दर्शकों को अपनी परफॉर्मेस
से मुरीद बना दिया।
कलाकारों
ने सबसे पहले वैस्टर्न क्लासिकल
से जयपुरवासियों को रूबरू
करवाया। इसके बाद दक्षिण
भारतीय संगीत शैली में कथक
के बोल सुनाए।
Source: JLF 2015
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