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Saturday, 24 January 2015

अभिषेक मनु ने डराया था मुझे : जेवियर

"कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी और कांग्रेस पार्टी के लोगों ने पब्लिशर और मुझे सोनिया पर किताब रिलीज न करने के लिए डराया था। उनका मानना था कि यह राजीव-सोनिया के रोमांस पर आधारित है।

इसलिए इसमें हॉट सीन का जिक्र होगा, लेकिन उनकी जानकारी के लिए बता दूं किताब में ऎसा कुछ नहीं है।" यह बात, स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर 2008 में स्पेनिश भाष्ाा में छपी अपनी बुक "एल सारी रोजो" के इंग्लिश ट्रांसलेशन "द रेड साड़ी" के संदर्भ में शुक्रवार को जेएलएफ में कही।

किताब चार साल तक इंडिया में बैन रही है। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) के फ्रंट लॉन्स में आयोजित सेशन "रोमांस, ट्रेजेडी एंड ट्रुथ टेलिंग: द रेड साड़ी एंड अदर स्टोरीज" में मधु त्रेहान और फ्लोरेंस नोइविले के साथ चर्चा में उन्होंने कहा कि किताब के विरोध ने मुझे फ्री पब्लिसिटी भी दी।

उन्होंने कहा कि सोनिया पर ही किताब इसलिए लिखी, क्योंकि मैं इस बात से हैरान था कि एक "मीडिया- शाई" पॉलिटीशियन पर कोई किताब नहीं है।


मोरो ने कहा कि "मैं सोनिया से पहली बार राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक आयोजन के दौरान मिला था। उस दौरान मैंने उन्हें बताया था कि मैं आप पर रिसर्च कर रहा हूं।

सोनिया को इंटरव्यू देना पसंद नहीं है और वे ज्यादा किसी से नहीं बोलतीं। मैंने किताब में राजीव-सोनिया के प्रेम और एक विदेशी महिला होने के नाते उनके भारतीय कल्चर को बेहतरीन तरीके से अपनाने पर लिखा है।

पिता के विरूद्ध होने के बावजूद सोनिया ने न सिर्फ राजीव से शादी की, बल्कि भारत के कल्चर को भी पूरी तरह से फॉलो किया। हिंदी सीखने, साड़ी पहनने और भारतीय बहू जैसा बर्ताव उनके समर्पण को दर्शाता है।

इमरजेंसी के समय भी उन्होंने भारतीय बहू की जिम्मेदारी पूरी तरह से उठाई। हालांकि शुरू में सोनिया राजनीति को पसंद नहीं करती थी, लेकिन बाद में वे कैसे दुनिया की शक्तिशाली महिलाओं में शुमार हो जाती हैं, यह हैरान कर देने वाला है। राहुल गांधी के राजनीति के सवाल पर मोरो ने कहा कि "वे अब भी यंग हैं।"

3.30 क्करू - 4.30क्कद्व
रोमंास, ट्रेजेडी एंड ट्रुथ टेलिंग : दे रेड साड़ी एंड अदर स्टोरीज
जेवियर मोरो, फ्लोरेंस नोइविले इन कन्वर्सेशन विद्

मधु त्रेहान

Source: JLF

Friday, 23 January 2015

अब्बा की विरासत से करवाया रू-ब-रू

विरासत गुरूवार को एक बार फिर पूरी शिद्दत के साथ साकार हुई। विख्यात शायर कैफी आजमी की असरदार पंक्तियों को उनकी एक्ट्रेस बेटी शबाना आजमी ने फेमस हैरिटेज मॉन्यूमेंट हवामहल में साझा किया।

यह अनूठा संगम पर्यटन विभाग, राजस्थान और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की ओर से सजाई गई सांस्कृतिक संध्या में देखने को मिला। शबाना ने कैफी की शायरी का गुलदस्ता पेश कर उनकी कलमकारी की गहराई से रूबरू करवाया।
शबाना ने शुरूआत कैफी की नज्म "दायरा" सुनाकर की। उन्होंने "जिस्म से रूह तक, रेत ही रेत है..., फिर भी मयखाना खाली है" और "गौसे गौसे खड़ी मस्जिद बड़ी बड़ी " सुनाकर तारीफ बटोरी।

रोज बढ़ता हूं जहां से आगे
फिर वहीं लौट के आ जाता हूं

बारहा तोड़ चुका हूं जिनको
इन्हीं दीवारों से टकराता हूं

रोज बसते हैं कई शहर नए
रोज धरती में समा जाते हैं

जलजलों में थी जरा सी गर्मी
वो भी अब रोज ही आ जाते हैं।

शबाना की गुजारिश पर सुनाए "ये आंसू..."
शबाना के बाद गीतकार जावेद अख्तर ने भी अपनी कलम से निकले शब्दों का जादू बिखेरा। उन्होंने दो नज्में पेश कीं, जिसमें पहली "मैं भूल जाऊं तुम्हें..." और शबाना की गुजारिश पर दूसरी नज्म "ये आसूं क्या सवाल है..." पेश की।
मैं भूल जाऊं तुम्हें, अब यही मुनासिब है।
मगर भुलाना भी चाहूं तो किस तरह भूलूं।

कि तुम तो फिर भी हकीकत हो कोई ख्वाब नहीं।
यहां तो दिल का ये आलम है क्या कहूं।

कमबख्त भुला सका ना ये वो सिलसिला जो था ही नहीं
वो इक खयाल जो आवाज तक गया ही नहीं

वो एक बात जो मैं कह नहीं सका तुमसे
वो एक रब्त जो हममें कभी रहा ही नहीं

स्पेनिश कलाकारों ने सुनाए कथक के बोल
सांस्कृतिक संध्या में शबाना और जावेद के अलावा स्पेनिश कलाकारों ने भी दर्शकों को अपनी परफॉर्मेस से मुरीद बना दिया।


कलाकारों ने सबसे पहले वैस्टर्न क्लासिकल से जयपुरवासियों को रूबरू करवाया। इसके बाद दक्षिण भारतीय संगीत शैली में कथक के बोल सुनाए।

Source: JLF 2015

Thursday, 22 January 2015

बॉलीवुड में जिसका पैसा लगता है, उसे लगता है वह ज्यादा जानता है: प्रसून

हम लोग संस्कृत, साहित्य और माइथोलॉजी के बारे में बहुत बात करते हैं, तो इसमें अच्छा है कि हम संस्कृत साहित्य को भी पढ़ें। मैं पुराने लेख, साहित्य के बारे में जानने के लिए संस्कृत की पुस्तकें पढ़ता हूं और इन दिनों मैं अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त संस्कृत किताबों को पढ़ने में बिताता हूं। इसके साथ ही यूथ क ो भी सलाह देना चाहता हूं कि वे माइथोलॉजी बुक्स पढ़ें और पुराने साहित्य, लेखों और रचनाओं के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानें।

प्रसून ने लेखक की तरह पाठक की भी आजादी का पक्ष लिया। उन्होंने कहा, जिस तरह लेखक की आजादी लिखने की हो, उसी तरह पाठक की भी आजादी हो। वह यह कह सके कि "यदि आप लचर लेखक हैं, तो मैं इसे नहीं पढ़ना चाहता।" लेकिन हमने इस आजादी को दरकिनार कर रखा है, कोई भी लेखक अपनी बुराई सुनना पसंद नहीं करता।
म शहूर गीतकार प्रसून जोशी ने बॉलीवुड में इस्तेमाल होने वाले देशज शब्दों की आपत्ति पर निशाना साधा है। उनका कहना है कि "बॉलीवुड में जिसका पैसा लगता है, उसे लगता है वह लेखक से ज्यादा जानता है।" जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) के सेशन "तारे जमीं पर" में कवि यतीन्द्र मिश्र के साथ चर्चा में उन्होंने कहा कि जब मैंने "मस्ती की पाठशाला" और "बुर्शट पहनके" गाना लिखा तो इन शब्दों पर असहमति थी कि "लोग क्या समझेंगे?"

मैंने कहा, मैं भी तो उसी समाज में रहता हूं जहां ये शब्द बोले-सुने जाते हैं, तो इस्तेमाल क्यों नहीं किए जा सकते? मुझे "बुर्शट" लिखने में तसल्ली मिल गई और देखिए उसका जिक्र होकर वह सफल भी हो गया। इसी तरह, "मसकली" का मतलब कुछ नहीं होता, लेकिन बुद्धिजीवियों ने मुझसे पूछा था "ये किस संदर्भ में लिखा।" इसलिए मुझे उसे सही साबित करने के लिए "कबूतर का नाम मसकली रखना पड़ा।" दरअसल वे इन शब्दों को समझना ही नहीं चाहते।

बॉलीवुड में भाष्ााओं का भी प्रभुत्व है। बॉलीवुड में कमजोर भाष्ााएं दबा दी जाती हैं। जैसे लड़की "कुड़ी पंजाबी" ही क्यों होती है? किसी ने यह समझने की कोशिश क्यों नहीं कि लड़की को उडिया में क्या कहा जाता है? मैं जेएलएफ जैसे मंचों से इस पर चर्चा करना चाहता हूं कि इस ऑडियो विजुअल युग में जो आवाजें बंद हैं, उनको बचाया जाए। इस पर चर्चा हो। उन भाष्ााओं और लोक शब्दों पर भी चर्चा होनी चाहिए। उन भाष्ााओं को अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई क्यों लड़नी पड़े?

Wednesday, 21 January 2015

प्रसून जोशी आज करेंगे "लक्ष्य" का पाठन

एड गुरू और गीतकार प्रसून जोशी बुधवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अपनी कविता "लक्ष्य" का पाठन करेंगे।



वे "चारबाग" में दोपहर सवा दो बजे से सवा तीन बजे के सत्र "तारे जमीन पर" में कविता पाठ करेंगे। उनकी यह रचना राजस्थान पत्रिका के साहित्य प्रेमी पाठकों के लिए विशेष तौर पर प्रकाशित की जा रही है।

Source: Jaipur Literature Festival 2015

प्रसून जोशी-"लक्ष्य"

लक्ष्य ढूँढते हैं वे जिनको
वर्तमान से प्यार नहीं है
इस पल की गरिमा पर जिनका
थोड़ा भी अधिकार नहीं है
इस क्षण की गोलाई देखो
आसमान पर लुढ़क रही है
नारंगी तरूणाई देखो
दूर क्षितिज पर बिखर रही है
पक्ष ढूँढते हैं वे जिनको
जीवन ये स्वीकार नहीं है
लक्ष्य ढूँढते हैं वे जिनको
वर्तमान से प्यार नहीं है
नाप नाप के पीने वालों
जीवन का अपमान न करना
पल पल लेखा जोखा वालों
गणित पे यूँ अभिमान न करना
नपे तुले वे ही हैं जिनकी
बाहों में संसार नहीं है
लक्ष्य ढूँढते हैं वे जिनको
वर्तमान से प्यार नहीं है
जिन्दा डूबे डूबे रहते
मृत शरीर तैरा करते हैं
उथले उथले छप छप करते
गोताखोर सुखी रहते हैं
स्वप्न वही जो नींद उड़ा दे
वरना उसमें धार नहीं है
लक्ष्य ढूँढते हैं वे जिनको
वर्तमान से प्यार नहीं है
कहाँ पहुँचने की जल्दी है
नृत्य भरो इस खालीपन में
किसे दिखाना तुम ही हो बस
गीत रचो इस घायल मन में
पी लो बरस रहा है अमृत
ये सावन लाचार नहीं है
लक्ष्य ढूँढते हैं वे जिनको
वर्तमान से प्यार नहीं है
कहीं तुम्हारी चिन्ताओं की
गठरी पूँजी ना बन जाए
कहीं तुम्हारे माथे का बल
शकल का हिस्सा ना बन जाए
जिस मन में उत्सव होता है
वहाँ कभी भी हार नहीं है
लक्ष्य ढूँढते हैं वे जिनको
वर्तमान से प्यार नहीं है।